Swami Vivekananda Biography in Hindi: स्वामी विवेकानंद यह नाम तो आपने जरूर ही सुना होगा, आज के इस पोस्ट में हम एक ऐसे महान व्यक्ति के बारे में बात करने वाले है जिसने भारत की संस्कृति पूरी दुनिया में फैलाया वह व्यक्ति कोई और नहीं स्वामी विवेकानंद ही है।
स्वामी विवेकानंद के बारे में जानना काफी रोचक है, क्योंकि इनकी जिंदगी में ऐसी बहुत से घटना है जो सभी के साथ होता है लेकिन बहुत से लोग इसपर ध्यान नहीं देते है। वही जो इसपर ध्यान देता है और खुद की तलाश करता है तो वह महान बन जाता है।
Table of Contents
स्वामी विवेकानंद जीवनी का झलक (Swami Vivekananda Biography intro)
संख्या | बिंदु | जानकारी |
1 | नाम | नरेन्द्र दास दत्त |
उपनाम | स्वामी विवेकानंद | |
2 | जन्म तिथि | 12 जनवरी 1863 |
3 | जन्म स्थान | कोलकाता, भारत |
4 | लिंग | पुरुष |
5 | माता का नाम | भुवनेश्वरी देवी |
6 | पिता का नाम | विश्वनाथ दत्त वरिस्ट |
7 | दादा का नाम | दुर्गा चरण नाग |
8 | वैवाहिक स्थिति | अविवाहित |
9 | गुरु का नाम | रामकृष्ण परमहंस |
10 | भाई और बहन | 9 |
11 | धर्म | हिन्दू |
12 | नागरिकता | भारतीय |
13 | शिक्षा | ईश्वर चंद विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान, प्रेसीडेंसी कॉलेज |
14 | पेशा | आध्यात्मिक गुरु |
15 | संस्थापक | रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन |
16 | शौक | पढ़ना, यात्रा करना, मदद करना |
17 | प्रसिद्धि का मुख्य कारण | धर्म की संसद शिकागो का भाषण |
18 | उम्र | 39 साल और 5 महीने |
19 | निधन का स्थान | बेलूर मठ, बंगाल, भारत |
20 | निधन | 4 जुलाई 1902 |
21 | निधन का कारण | अस्थमा और मधुमेह |
स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय – Swami Vivekananda Biography in hindi)
स्वामी विवेकानंद का जन्म दिनांक 12 जनवरी 1863 कलकत्ता में हुआ था। इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था तो माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। स्वामी विवेकानंद का परिवार काफी अमीर हुआ करता था, उनके पिता विश्वनाथ दत्त वरिस्ट वकील थे। वही उनकी माता भुवनेश्वरी देवी गृहिणी थी।
स्वामी विवेकानंद को हिंदू भिक्षु के रूप में जाना जाता है। विवेकानंद ने भारत की संस्कृति को दुनिया में फैलने पर ज्यादा काम किया। वेदांत और योग की पश्चिम में विवेकानंद ने ही शुरू किया था।
स्वामी विवेकानंद काफी शांत और सरल व्यक्ति थे, वह हर किसी को एक बराबर ही समझते थे, वह काफी ज्ञानी भी थे। उन्होंने अपने जीवन काल बहुत सी पुस्तकें पढ़ी थी और सभी पुस्तकों का ज्ञान उनके दिमाग में हमेशा रहता था। इसको इस समय सबसे ज्यादा प्रसिद्धि मिली जब उन्होंने शिकागो में अपना भाषण दिया।
स्वामी विवेकानंद का शुरुआती जीवन (Swami Vivekananda early life)
12 जनवरी 1863 को 3 गौर मोहन मुखर्जी स्ट्रीट, कलकत्ता में बंगाली परिवार में स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ। स्वामी विवेकानंद का जन्म एक रईस खनदान में हुआ था। इनका बचपन का नाम नरेन्द्र दास दत्त हुआ करता था।
हम आपको बता दें कि उस समय कलकत्ता भारत की राजधानी हुआ करता था। दुर्गा चरण नाग स्वामी विवेकानंद के दादा थे जो की संस्कृत और फारसी के विद्वान हुआ करते थे। दुर्गाचरण ने 25 साल की उम्र में अपने घर को छोड़ करके साधु बन गए।
विवेकानंद की माता काफी धार्मिक थी, जिससे विवेकानंद को हिन्दू धर्म और सनातन संस्कृति के बारे में काफी गहराई से सीखने को मिला। विवेकानंद काफी कम उम्र से ही काफी ज्यादा आध्यात्मिकता हो गए थे।
जब उनकी माता रामायण, महाभारत, गीता सूनाती तो यह सुनने में इतने मगन हो जाते की इन्हे कुछ और सुनाई ही नहीं देता था।
उन्हें बचपन से ही भिक्षुओं की तरह घूमना और भटकना पसंद था। नरेंद्र बचपन में काफी शरारती भी थे, उनके माता इनकी शरारत से काफी परेशान होती थी। वही कहती थी कि मैंने शिव से एक लड़का मांगा लेकिन उन्होंने मुझे अपना एक राक्षस भेजा है।
स्वामी विवेकानंद की शिक्षा (Swami Vivekananda Education)
सन 1871 जब स्वामी विवेकानंद का उम्र 8 साल था, तब से उन्होंने ईश्वर चंद विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में जाने को मौका मिला। सन 1877 में स्वामी विवेकानंद के परिवार की किसी कारण कोलकाता से रायपुर जाना हुआ जिसके कारण इसकी पढ़ाई रुक गई।
करीब 2 साल बाद स्वामी जी का परिवार फिर से कलकत्ता आ गया। सन 1879 प्रेसीडेंसी कॉलेज के प्रवेश परीक्षा में प्रथम श्रेणी हासिल करने वाले एक मात्र स्वामी विवेकानंद जी ही थे।
सन 1884 में विवेकानंद ने बीए की डिग्री भी प्राप्त कर लिया। वह बस एक या दो विषय को ही नहीं पढ़ते थे बल्कि इनको कई विषय पढ़ना पसंद था जैसे फिलोसोफी, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य के साथ ही वेदों को भी पढते थे।
आध्यात्मिक गुरु कैसे बनें (how to become a spiritual master)
स्वामी विवेकानंद जी ने बचपन में काफी जानवरों को पाल रखा था और यह सभी जानवर से प्रेम भी करते थे। हम आपको बता दे कि जब स्वामी विवेकानंद छोटे थे तभी से इनका दिल भगवान से काफी जुड़ गया था। उनको तरह-तरह से सपने भी आया करते थे। जिसमे उन्हें बुद्ध दिखते थे जो कहते थे तुम भगवान के खोजने की राह पर चलो।
कॉलेज के समय उन्हें वेस्टर्न कल्चर काफी पसंद आ जाता है। वह वेस्टर्न कल्चर को काफी अच्छा मानने लगे थे। कॉलेज खत्म होने के बाद वह रामकृष्ण परमहंस जी से मिलते है।
रामकृष्ण परमहंस पहले से ही जानते थे कि नरेन्द्र दास दत्त (स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम) भवगवान की राह पर चलने वाले है। तो रामकृष्ण परमहंस इनको हिन्दू धर्म की काफी बातें बताते है लेकिन शुरू में स्वामी विवेकानंद नहीं मानते है।
काफी दिनों तक स्वामी विवेकानंद को समझाने की कोशिश करते है लेकिन वह नहीं समझते है। कुछ समय के बाद ही स्वामी विवेकानंद के पिता का देहांत हो जाता है, जिसके कारण आर्थिक स्थिति हद से ज्यादा ख़राब हो जाती है।
तब यह भगवान की आराधना में लग जाते है लेकिन इनकी आर्थिक स्थिति सही नहीं होती है तब यह रामकृष्ण परमहंस मिलते है और उनको अपना गुरु बना लेते है और इस दुनिया को सही रह पर लाने की कोशिश करने लगते है।
सन 1885 को स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस का कैंसर के कारण निधन हो गया। इसके बाद सभी नए साधु/संन्यासी को पढ़ाने की जिम्मेदारी स्वामी जी की ही थी।
इस जिम्मेदारी को स्वामी जी ने पूरी निष्ठा से निभाया। हम आपको यह भी बता दे कि दिन के समय वह अपने घर के लिए भी कार्य किया करते थे और रात के समय मठ में मौजूद साधु/संन्यासी को ज्ञान दिया करते थे।
हम आपको यह भी बता दे की स्वामी जी ने रामकृष्ण संघ की स्थापना की जिसको आगे चलके रामकृष्ण मठ व रामकृष्ण मिशन से बदल दिया गया।
धर्म की संसद में स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda in Parliament of Religion)
एक दिन स्वामी विवेकानंद जी को एक सपना आया, उस सपने में उन्होंने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस को देखा जो की समुन्द्र की और बढ़ रहे थे और स्वामी जी को अपनी ओर आने को कह रहे थे साथ ही सपने में उन्होंने अपनी माँ की आवाज भी सुनी जो कह रही थी ‘जाओ बेटा जाओ’।
इस सपने के बाद स्वामी विवेकानंद जी को यह विश्वास हो गया कि उन्हें अमेरिका जाना चाहिए और parliament of religion में हिस्सा लेना चाहिए। उनके गुरु और माता का आशीर्वाद उनके साथ है।
parliament of religion को 1893 में शुरू किया गया था जो की world’s columbian exposition एक एक हिस्सा था। जब christopher columbus ने अमेरिका की खोज किया था तो उसका जश्न मनाने के लिए यह किया जा रहा था। वेस्टर्न देश विज्ञान में कितना आगे बढ़ गया है उसको दिखाना ही मुख्य उदेश था।
parliament of religion में हर एक धर्म का प्रतिनिधि शामिल हुआ था। हम आपको यह भी बता दे कि इसमें करीब 6 हजार लोग शामिल हुए थे।
सभी अपना-अपना भाषण तैयार करके आए थे लेकिन स्वामी जी ने अपना भाषण बिलकुल ही तैयार नहीं किया था। इसलिए उन्होंने अपना नाम प्रबंधन से कह करके बहुत नीचे करा लिया था।
अंत में वह समय आ ही गया जब इन्हे लोगो के सामने भाषण देना था। यह लोगो के सामने गए और अपनी बात को “अमेरिकी भाईयो और बहनों…” से शुरू किया। यह लाइन वहाँ पर मौजूद सभी लोगो के दिल को छू गया।
पूरे भाषण में स्वामी जी ने किसी भी धर्म को सबसे अच्छा और न ही किसी धर्म को बुरा कहा। बस वह सभी को एक बराबर होने की बात कर रहे थे इसके साथ ही वह एक दूसरे को आपस में भाई चारा रखने की बात कर रहे थे।
जिसके कारण उनका भाषण किसी को भी सुनने पर मजबूर कर दिया। जितना समय स्वामी जी को भाषण देना था उससे ज्यादा समय तक वह भाषण देते रह गए और लोग सुनते गए, समय का तो पाता ही नहीं चला।
स्वामी विवेकानंद की लोकप्रियता (Popularity of Swami Vivekananda)
स्वामी विवेकानंद जी ने जो भाषण दिया था वह आग की तरह पूरी दुनिया में फ़ैल गई। भारत के कई अख़बार ने इस खबर को प्रकाशित किया। जो स्वामी जी के करीबी थे उन्हें तो इसपर विश्वास ही नहीं हो रहा था।
अमेरिका में कई स्थान पर उन्होंने अपना भाषण दिया जिससे काफी लोग प्रभावित हुए। वह अपने हर एक भाषण में दया और सबको एक बार होने की बात कहते थे।
दिनांक 15 जनवरी 1897, जब स्वामी जी भारत आए तो हजारो लोग उनका स्वागत करने के लिए इकठा हुए थे। उनके कपडे की एक छलक पाते ही सभी लोग उत्साह से भर गए। स्वामी जी को सम्मान देने के लिए सभी लोग जमीन पर बैठ गए। स्वामी विवेकानंद जी एक संन्यासी थे जिनके पास न तो पैसा, और न तो कोई घर था। बस लोग उनके ज्ञान और सोच को पसंद करते थे।
उनकी लोकप्रियता बस भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में है। आप स्वामी विवेकानंद की लोकप्रियता इससे मालूम कर सकते है अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस स्वामी विवेकानंद जी के जन्म दिन पर मनाया जाता है।
स्वामी विवेकानंद के कार्य (Swami Vivekananda work)
Parliament of religion में भाषण दे करके पूरी दुनिया में भारत को एक नया पहचान दिलाया।
स्वामी जी को अस्थमा हो गया था दिन प्रति दिन उनकी स्वस्थ में गिरवाट देखने को मिल रही थी। फिर भी वह दुसरी और आखरी बार स्वामी जी फिर से उत्तर की और चल दिए।
स्वामी जी ने सैन फ्रांसिस्को और न्यूयॉर्क में वेदांत सोसायटी की स्थापन किया। इसके साथ ही उन्होंने ‘शांति आश्रम’ को कैलिफोर्निया में स्थापीत किया। उन्होंने दो महाद्वीप पूर्व और पश्चिम को आपस में जोड़ने में काफी बड़ा योगदान दिया।
पहले लोगो को भारत संस्कृति का महत्व नहीं मालूम था लेकिन उन्होंने दुनिया में भारत की संस्कृति को फैलाने और उसका महत्व बताने में काफी योगदान दिया।
स्वामी विवेकानंद का मृत्यु (Swami Vivekananda death)
अंत के दिनों में स्वामी जी अस्थमा हो गया था और वह बेलूर मठ में रहने लगे थे। समय के साथ उनका अस्थमा बढ़ता जा रहा था और उनकी शरीर कमजोर होती जा रही थी।
अपनी मृत्यु से पहले ही उन्होंने बेलूर मठ के बड़े भिक्षु को बता दिया था कि उनका अंतिम संस्कार कहा हो। वह कोई दूसरा स्थान नहीं बल्कि बेलूर मठ में ही एक स्थान था।
दिनांक 4 जुलाई 1902 दिन शुक्रवार शाम के 7 बजे घंटी बजी पूजा का समय हो चला था। स्वामी जी अपने कमरे में चले गए, उन्होंने कहा मुझे एक घंट छोड़ दिया जाए।
फिर उन्होंने अपने एक सेवक को बुलाया और सभी खिड़की को खुलवा दिया ताकि साफ़ हवा कमरे में आ सके। रात 9 बजे उन्होंने आखरी साँस लिया। रात 9 बजे उन्होंने अपने शरीर को त्याग दिया।
सवाल और जवाब – FAQs
सवाल. कितनी उम्र पर स्वामी विवेकानंद की मौत हुई?
जवाब. स्वामी विवेकानंद की मौत मात्र 39 साल और 5 महीने में हो गए थी।
सवाल. विवेकानंद के सिद्धांत क्या थे?
जवाब. मुख्य तौर पर विवेकानंद के 3 सिद्धांत थे पहला निर्भय बनो, दूसरा आत्मविश्वास बनाए रखे, तीसरा अपने मुख्य के शब्द पर पूरा विश्वास रखे।
सवाल. विवेकानंद ने शादी क्यों नहीं क्या?
जवाब. विवेकानंद के शादी न करने का कारण यह था कि वह सन्यासी थे। सन्यासी शादी नहीं करते है।
सवाल. विवेकानंद जी के मृत्यु का कारण?
जवाब. विवेकानंद जी के मृत्यु का कारण अस्थमा, मधुमेह था।
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