महात्मा गान्धी जी को तो हम सभी जानते है कि वो कौन थे और उन्होंने क्या क्या किया था, जिससे हमारा देश आज एक लोकतांत्रिक देश बन पाया है, तो आज इस पोस्ट में हम महात्मा गांधी पर निबंध (Mahatma Gandhi Essay in hindi) के रूप में आपको उनके जीवन की कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं से अवगत कराएंगे।
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महात्मा गांधी पर निबंध 2021 | Mahatma Gandhi Essay in hindi
आज हमारे देश का डंका पूरी दुनिया में बजता है, क्योंकि यह पूरी दुनिया की सबसे बड़ी डेमोक्रेटिक कंट्री है, यहाँ पर सभी धर्म के लोग मिलकर रहते है, और देश के आजाद होने के बाद से ऐसा नही है, जब हमारा भारत देश अंग्रजो का गुलाम था तब से ही ऐसा है, उस टाइम हमारे देश का नाम ब्रिटिश भारत हुआ करता था, इस ब्रिटिश भारत को भारत बनाने में सभी धर्म, जाती के लोगो का योगदान है, जिसमें लाखो लोग शहीद हुए थे, हजारों लोगों ने अपनों को खोया था।
क्यों हुआ था भारत अंग्रेजो का गुलाम –
बात 1600 की है जब भारत मे मुगलो का राज हुआ करता था, उस समय बहुत सी विदेशी रियासते भारत की ओर आकर्षित हुई क्योंकि जितनी धन संपदा भारत के पास थी उतनी किसी भी अन्य यूरोपीय देशो के पास नही थी, उस समय से ही विदेशियों का भारत में आना जाना शुरू हो गया था और इसी कड़ी में साल 1608 में सबसे पहला अंग्रेजी दूत जिसका नाम विलियम हॉकिन्स था भारत आया जो कि इंग्लैंड के राजा जेम्स प्रथम के कहने पर आया था।
उसका मुख्य उद्देश्य यही था कि कैसे भी करके भारत से मुगल राज को खत्म करके ब्रिटिश राज लाया जाए, बस उसी दिन से मुगलो का पतन होना शुरू हो गया और 1740 से 1757 के बीच तक मुगल राज पूरी तरह से खत्म होने की कगार पर आ गया था, और अंग्रेजों ने आधे से ज्यादा भारत पर अपना कब्जा जमा लिया था।
जहाँ भी इनका कब्जा होता वहाँ के लोग बहुत ज्यादा दुःखी और परेशान होते थे क्योंकि अंग्रेज उन पर बहुत अत्याचार करते थे, उनके सभी अधिकार छीन लिए गए थे, और धीरे – धीरे पूरे भारत पर इनका अधिकार हो गया, अंग्रेजों ने यहाँ के लोगो को अपना गुलाम बना के काम करवाना शुरू किया और बदले में उन्हें उचित मजदूरी भी नहीं मिलती थी।
महात्मा गान्धी ( एक नए युग की शुरुआत ) संक्षिप्त जीवन परिचय –
जब भारत में सभी जगह अंधकार फैला हुआ था तब 2 oct 1869 में गुजरात के काठियावाड़ में एक बच्चे ने जन्म लिया, उस समय कोई भी नही जानता था कि यह बच्चा एक दिन गुलाम भारत को आजाद कराने में मुख्य भूमिका अदा करेगा।
उस बच्चे का नाम उसके माता पिता ने मोहनदास करमचंद गान्धी रखा था जो कि बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे, उनके पिता का नाम करमचन्द था जो कि काठियावाड़ में एक दीवान थे, उनकी माता पुतलीबाई थी जिनके 3 बच्चे थे जिनमें मोहनदास सबसे छोटे थे।
महात्मा गान्धी की शिक्षा –
मोहनदास बचपन में पढ़ाई में ज्यादा तेज नही थे लेकिन जैसे जैसे वो बड़े होते गए वैसे वैसे ही वो पढ़ाई में तेज होते गए,
जब वो 13 साल के थे तब उनके पिता ने गुजरात के ही एक धनी व्यापारी की बेटी से इनकी शादी करवा दी थी, जिसका नाम कस्तूरबा था।
शादी होने के बाद गान्धी जी अपनी वकालत की पढ़ाई के किये इंग्लैंड चले गए थे, वहाँ से इन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और वापिस से 1890 में भारत वापिस आ गए।
गान्धी जी के राजनीतिक जीवन के पहले आंदोलन की शुरुआत –
महात्मा गान्धी भारत वापिस तो गए थे लेकिन उन्होंने यह कभी भी नहीं सोचा था कि उनके भारत आते ही उनका आजादी का सफर शुरू हो जाएगा, उनके वापिस आने के कुछ दिन बाद ही उनके सामने एक बहुत ही कठिन मुकदमा आया जो कि दादा अब्दुल्ला का था, उनका दक्षिण अफ्रीका में कुछ जमीनी विवाद था।
जब गान्धी जी अफ्रीका गए तब उन्होंने वहां देखा कि जो भी एशिया से अफ्रीका काम करने जाता था तो उसके साथ बहुत ज्यादा ही भेदभाव किया था, क्योंकि वहाँ पर उस समय रंग भेद नीति लागू थी, गोरे लोग अलग और काले लोग अलग, रंग के हिसाब से वहाँ रहन सहन था, जहाँ गोरे लोग ऐशोआराम की जिंदगी जीते थे, वही काले लोग गंदगी में रहते थे, ऐसा करना उनका कोई शौक या जन्मसिद्द अधिकार नही था बल्कि उनकी मजबूरी थी।
यह सब देख के गान्धी जी बहुत विचलित हो गए थे, इसके बाद उन्होंने वहीं रुककर लोगो को उनका अधिकार दिलाने की ठान ली, उन्होंने वहां के मजदूरों को एक साथ किया और वहाँ की ब्रिटिश सरकार के प्रति आंदोलन शुरू कर दिया।
साल 1894 से लेकर 1906 के बीच यह आंदोलन काफी शांत तरीके से हुआ। इस बीच गान्धी जी ने अफ्रीका की सरकार को बहुत से एप्पलीकेशन और याचिकायें लिख के भेजी जिनका वहाँ की सरकार पर कुछ खास असर नही हुआ, इसके बाद गान्धी जी ने ब्रिटेन में भी याचिकाएँ लिख के भेजी, तब भी कुछ खास असर नही पड़ा।
गान्धी जी का पहला सत्याग्रह आंदोलन –
महात्मा गान्धी ने अपने स्तर पर सभी कोशिशें कर के देख ली थी, जितनी कानूनी कार्यवाही वो कर सकते थे उन्होंने की, लेकिन तब भी परिणाम उनकी उम्मीदों के विपरीत आ रहा था।
इन सबसे तंग आकर गान्धी जी ने वहाँ पर सत्याग्रह आंदोलन शुरू कर दिया जो कि 1906 से 1914 तक चला, इस वजह से वहाँ की सरकार के रोंगटे खड़े हो गए, तो उन्होंने गान्धी जी को रास्ते से हटाने के लिए उनकी और उनके कुछ साथियों की गिरफ्तारी करवा दी और उन्हें जेल में ही मारने का तय कर लिया था, लेकिन गान्धी जी के साथ पूरा अफ्रीका था, उनके जेल जाते ही सब जगह का आंदोलन उग्र हो गया, सब जगह लोग हिंसा पर उतर आए, देश की यह दुर्दशा देख कर वहाँ की सरकार ने गान्धी जी को रिहा कर दिया, जिससे सभी लोग शांत हो गए।
और उन्होंने वहां बहुत संघर्ष करने के बाद दक्षिण अफ्रीका को आजादी दिलवा दी, उसके बाद जनवरी 1915 में वे भारत वापिस आ गए,
उनके इस कारनामे की वजह से पूरे भारत में वे काफी महशूर हो गए थे।
भारत को आजाद कराने का उनका सफर उनकी मृत्यु तक –
जब गान्धी जी भारत वापिस आये तब यहाँ की दशा भी अफ्रीका के जैसे ही थी लेकिन उन्होंने जल्दबाजी में कोई भी कदम नही उठाया। उन्होंने तय किया कि वो अभी पूरे 1 साल तक पूरे भारत का अवलोकन करेंगे, इसके बाद ही वो कोई ठोस कदम उठाएंगे।
उस समय इंग्लैंड पहले विश्व युद्ध में लगा हुआ था,
महात्मा गान्धी का भारत में पहला आंदोलन और उनकी पहली भूख हड़ताल ( 1917 – 1918 ) –
गान्धी जी ने पूरे भारत का अवलोकन करने के बाद यह महसूस किया कि यहाँ के लोगो में हिम्मत तो है लेकिन एकता नही है, इसी एकता को लाने के लिए और पूरे भारत में आजादी की चिंगारी जलाने के लिए उन्होंने 1917 में अपना पहला आंदोलन चंपारण से शुरू किया उन्होंने वहां के नील की खेती करने वाले किसानो को उनका अधिकार दिलाया।
इसके बाद उन्होंने अहमदाबाद मिल में पहली भूख हड़ताल की, क्योंकि वहाँ की मिल के मालिक अपने मजदूरों के साथ अन्नाय कर रहे थे।
तब ग़ांधी जी ने सभी मजदूरों को समझाया कि उग्र होने से कोई भी लाभ नही होगा, तुम सबको शांति के साथ आंदोलन करना है, इस आंदोलन के बारे में सभी अखबारों में छप गया जिससे मिल के मालिकों ने खुद की इज्जत बचाने के लिए मजदूरों का हक देना ही उचित समझा।
महात्मा गान्धी का दूसरा आंदोलन खेड़ा सत्याग्रह ( गान्धी जी का पहला असहयोग आंदोलन 1918 )
अहमदाबाद मिल वाले मजदूरों को उनका हक दिलाने के कुछ दिन बाद 1918 में ही गुजरात में सभी किसानो की फसलें जल गई, और सभी की भूखो मरने की नौबत आ गयी, और ब्रिटिश सरकार यह सब होने के बाद भी वहाँ की जनता से कर वसूल रही थी।
तब ग़ांधी जी ने वहाँ पर अपना पहला असहयोग आंदोलन शुरू किया, उसी समय से अंग्रेज और ग़ांधी जी आमने सामने खुलकर खड़े हो गए थे,
यह सब होने के बाद देश के और भी नेता ग़ांधी जी के समर्थन में आ गए थे,
जब वहां के किसानो के आंदोलन उग्र होने लगा तब अंग्रेजों ने ग़ांधी जी की बाते मान ली और 1 साल तक का कर माफ कर दिया गया।
अंग्रेजो का काला कानून ( रोलेट एक्ट 1919 ) –
लेकिन महात्मा गान्धी का संघर्ष यही पर खत्म नहीं होने वाला था, खेड़ा आंदोलन के कुछ ही महीनों के बाद 1919 में एक एक्ट पास हुआ जिसे हम सभी रोलेट एक्ट के नाम से जानते है जिसे सिडनी रोलेट नाम के एक ब्रिटिश अफसर ने पास किया था।
यह एक्ट सभी भारतीयों की आवाज कुचलने के लिए लाया गया था, जिसका विरोध पूरे भारत के लोगो ने खुलकर किया था।
जगह जगह पर जन आंदोलन होने लगें, कुछ जगह हिंसा भड़क उठी, बाज़ार में आग लगा दी गयी।
क्योंकि इस काले कानून की वजह से भारतीयों से सब कुछ छिन जाता।
इसी बीच ग़ांधी जी को बहुत बार जेल में भी डाला गया, उनपर अत्याचार किये गए।
गान्धी जी की गिरफ्तारी और चौरी–चौरा कांड 1922 –
रोलेट एक्ट के विरोध करने और उसे भारत में लागू न होने देने के लिए आंदोलन करने की वजह से गान्धी जी को जेल में बन्द कर दिया गया था,
इसी बीच कुछ लोगो ने ग़ांधी जी की गिरफ्तारी से दुखी होकर एक पूरी अंग्रेजी पुलिस चौकी जला डाली, जिसमें सभी पुलिस के अधिकारी जलकर मर गए।
जब इस बारे में ग़ांधी जी को पता लगा तो उनके दिल को बहुत बड़ा धक्का लगा, क्योंकि ग़ांधी जी ने हमेशा अहिंसा का रास्ता अपनाया था, और यही बात उन्होंने जनता को भी समझाई थी, इस बात से दुखी होकर ग़ांधी जी ने पूरे भारत के अपने सभी आंदोलन को वापिस लेने की घोषणा कर दी।
जिससे ब्रिटिश सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया, और ग़ांधी जी पूरे 6 साल तक शांत बैठे रहे।
इस बात का विरोध नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भी किया कि जब पूरे भारत में भारतीयों का उत्साह अपने high leval पर था तो सभी आंदोलन वापिस लेना किसी राष्ट्रीय विपत्ति से कम नहीं है।
लेकिन इन सबका ग़ांधी जी पर कोई भी असर नही पड़ा।
लेकिन इसी बीच ब्रिटिश सरकार ने एक घिनोनी चाल चली और ग़ांधी जी को 6 साल के लिए जेल में बंद कर दिया गया। इसके बाद फरवरी 1924 में ग़ांधी जी बहुत बीमार हो गए, और ब्रिटिश सरकार को न चाहते हुए भी उनको जेल से रिहा करना पड़ा।
गान्धी जी की प्रसिद्ध डांडी यात्रा 1930 –
जेल से छूटने और तबियत सही होने के बाद ग़ांधी जी फिर से मैदान में उतर आए लेकिन इस बार उन्होंने अपनी नीति बदल ली थी, क्योंकि इस बार उनके साथ भारत के बहुत सारे नेता भी खड़े थे जिनमें हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू जी भी थे।
लेकिन अंग्रेजो का अत्याचार थमने का नाम ही नही ले रहा था, इन सबसे तंग आकर ग़ांधी जी ने 12 मार्च से 6 अप्रैल तक डांडी यात्रा निकाली, जो कि 1930 की सबसे ज्यादा यादगार यात्रा थी, इस यात्रा में उन्होंने सरकार के नमक कानून का विरोध किया और खुद समुद्र किनारे जाकर नमक बनाया, यहाँ पर ग़ांधी जी ने ब्रिटिश सरकार के द्वारा बनाया गया नमक कानून तोड़ दिया।
और देखते ही देखते पूरे देश में नमक कानून टूटने लगा, इस बात से ब्रिटिश सरकार गुस्से में आ गई और ग़ांधी जी को फिर से जेल में डाल दिया गया।
फिर भारत में लोगो का गुस्सा देख कर, ग़ांधी जी और अन्य नेताओं को जेल से रिहा कर दिया गया।
गान्धी जी की मृत्यु –
देश में सब कुछ ठीक ही चल रहा था कि इसी बीच 30 जनवरी 1948 को ग़ांधी जी लोगों से मिलने के लिए बिड़ला भवन गए थे वहां पर वो पूरे दिन रुके और शाम की आरती के लिए तैयार होकर वो बाहर अपने लोगो से मिलने के लिये आये थे कि तभी उसी भीड़ में से एक आदमी जिसका नाम नाथूराम गोडसे था उसने उठकर ग़ांधी जी के सीने में गोली मार दी, गांधी जी को गोली लगते ही सब जगह अफरा तफरी मच गई, और नाथूराम को भीड़ ने दबोच लिया, लेकिन तब तक बहुत देर हो गई थी,
ग़ांधी जी अपनी आखिरी सांसे ले रहे थे लेकिन तब भी वो मुस्कुरा रहे थे और उन्होंने आखरी शब्द, हे राम, बोलकर अपनी आंखें हमेशा के लिए बंद कर ली।
और अहिंसा के इस पुजारी की यात्रा यही पर समाप्त हो गयी, उनकी मृत्यु की खबर पाकर सारा देश गम में डूब गया था क्योंकि साबरमती का लाल हम सभी को हमेशा के लिए छोड़कर जा चुका था।
गान्धी जी एक लेखक के रूप में–
गान्धी जी को किताबे लिखने का बहुत शौक था उन्होंने अपने पूरे जीवन काल में 50 के लगभग किताबें लिखी है, जिनमें अधिकतर उनकी आत्मकथाएं है, यहाँ हम उनके द्वारा लिखी गई कुछ किताबो के नाम आप सभी को बता रहे है –
★ सत्य के प्रयोग – यह उनकी पहली आत्मकथा थी।
★ दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह – यह भी एक आत्मकथा है, जिसे गान्धी जी ने अपने अफ्रीका आंदोलन के वक्त लिखा था।
★ हिन्द स्वराज – यह किताब उन्होंने भारतीयों में आजादी की ज्वाला जलाने के लिए लिखी थी, जो कि बहुत प्रसिद्ध हुई थी।
★ मेरे सपनों का भारत – इस किताब में उन्होंने आजाद भारत के भविष्य के बारे में लिखा था कि मेरे सपनों का भारत ऐसा होगा।
★ ग्राम स्वराज – यह किताब उन्होंने ग्रामीण जीवन के बारे में लिखी थी।
गान्धी जी को मिलने वाले प्रमुख पुरुष्कार –
वैसे तो गान्धी जी को ज्यादा पुरुष्कार नही प्राप्त हुए लेकिन जो भी प्राप्त हुए है उनके बारे में हम आपको बता रहे है –
★ मैन ऑफ द ईयर – बात 1930 की है जब गान्धी जी की ख्याति पूरे विश्व में फैल चुकी थी, इसीलिए उस समय की सबसे बड़ी पत्रिका द टाइम मैगजीन ने उनको मैन ऑफ द ईयर के नाम से पुरुष्कृत किया था।
★ इसके अलावा गान्धी जी को उनके मरने के बाद नोबल पुरस्कार मिलने वाला था लेकिन किसी कारणवश उन्हें ये पुरुष्कार नहीं दिया गया, इसके लिए उनका नाम 5 बार नामित किया गया था।
महात्मा गांधी जी के बारे मे कुछ प्रश्न और उन के उत्तर
प्रश्न: महात्मा गांधी की उम्र कितनी थी-
उत्तर: महात्मा गांधी की उम्र 78 साल थी-
प्रश्न: महात्मा गांधी के कितने बच्चें थे?-
उत्तर: 4 बेटे थे-
प्रश्न: महात्मा गांधी का जन्म कब हुआ था?-
उत्तर: 2 October 1869-
प्रश्न: महात्मा गांधी जी के पिता का नाम क्या था?-
उत्तर: करमचंद गांधी-
प्रश्न: गांधी जी का पूरा नाम क्या था?-
उत्तर: मोहनदास करमचंद गांधी था-
प्रश्न: महात्मा गांधी जी की माता का क्या नाम था?-
उत्तर: पुतलीबाई था-
प्रश्न: गांधी जी की मृत्यु कब हुई?-
उत्तर: मृत्यु 30 जनवरी 1948-
प्रश्न: गांधी जी की पत्नी का क्या नाम था?-
उत्तर: कस्तूरबा गांधी था।-
प्रश्न: महात्मा गांधी जी का जन्म किस गांव में हुआ था?-
उत्तर: गुजरात के पोरबंदर में हुआ था-
प्रश्न:गांधी जी पहली बार जेल कब गए थे?-
उत्तर: दस अप्रैल 1919 कोड-
निष्कर्ष – ग़ांधी जी सच में एक महान नेता होने के साथ एक अच्छे इंसान भी थे, जिनकी वजह से आज हम सभी अपने अधिकारों को जानते है, आजाद है, और कुछ भी कर सकते है।
अगर हमारे देश में ग़ांधी जी जैसा इंसान जन्मा न होता तो शायद आज भी हमारा भारत अंग्रेजों का गुलाम ही होता। हमारा देश युगों युगों तक ग़ांधी जी के इस बलिदान को कभी भी नही भुला सकेगा।
आपको हमारा यह आर्टिकल महात्मा गांधी पर निबंध (Mahatma Gandhi Essay in hindi) कैसा लगा हमें अपनी राय देकर जरूर बताइयेगा।